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रहस्यमाई चश्मा भाग - 39




जिसका बहुत गहरा प्रभाव शुभा के मन मस्तिष्क पर तो है ही साथ ही साथ उसके जीवन पर भी गहरा प्रभाव है जो इसके वर्तमान का निश्चित रूप से जिम्मेदार है लेकिन सच्छाई कोई ना तो जानता था ना ही समझता था सिर्फ अनुमान ही लगा सकता था संत समाज एव वनवासी आदिवासी समाज के कल्पना में भी यह बात नही आ रही थी कि शुभा भारत पाकिस्तान बँटवारे कि त्रादसी कि शिकार परिवार की एक मात्र जीवित सदस्य शुभा है!

शुभा को निद्रा में गए एक सप्ताह बीत चुके थे लेकिन वह जागने का नाम ही नही ले रही थी अब संत समाज को यह चिंता सताने लगी कि शुभा किस नए बीमारी समस्या का शिकार हो गयी उसका निद्रा में बड़बड़ाना जारी था एकाएक वह बोली यशोवर्धन तो यस को बढाने वाले को ही कहा जाता है
शुभा कि निद्रा में यशोवर्धन का नाम सुनकर सर्वानंद गिरी कुछ चिंता में अवश्य पड़ गए क्योकि वह स्वयं भी भारत कि आजादी के समय धर्मान्ध उग्रता कि भेंट उनका स्वंय का परिवार चढ़ गया था सर्वानद जी के पिता माता की हत्या भी हिन्दू मुस्लिम दंगे में पूर्वी पाकिस्तान में ही हुआ था किसी तरह से छिपते छिपाते भाग्य के सहारे सर्वानद पूरे एक वर्ष में कालाहांडी जंगलों में पहुचे थे जो क्रूरता मॉनव का दानवी खेल उन्होंने स्वंव देखा था वह इतना भयानक विभत्स एव हृदयविदारक था कि किसी भी मानव को भयाक्रांत कर जीवित ही मृत अवस्था मे पहचाने के लिए पर्याप्त था!

 बच्चे महिलाएं बुजुर्ग बृद्ध बीमार लाचार अपाहिज भिखारी कोई तो नही बचा था जिसकि जाती कि तस्दीक करके मारा न गया हो सर्वानद ने जी भारत वासियों का अपने ही देश राष्ट्र मातृभूमि में इस प्रकार से पशुवत काटा जाना स्वंय देखा था वह स्वंय उसके एक पात्र थे उनको यह बात जीवन के इस दहलीज पर भी समझ मे नही आई की क्यो देश के राजनीतिज्ञों ने देश के बटवारे का निर्णय लिया अंग्रेजो ने जिस भारत को गुलाम बनाया था!

वह सम्पूर्ण क्यो नही क्या तत्कालीन राजनीतिज्ञों कि भूल या किसी निहित स्वार्थपूर्ति की शीघ्रता में बटवारे को स्वीकार किया अंग्रेजो का यह तर्क की उन्होंने भारत के शासन कि बागडोर मुगलों से हासिल किया है और इस्टइंडिया कम्पनी के व्यवसाय कि अनुमति भी मुगल बादशाह द्वारा ही दी गयी थी अतः वे आजादी के बाद सत्ता की बाग डोर मुगल को ही सौंपेंगे इसीलिये एक दिन पूर्व पाकिस्तान स्वतंत्र हुआ यही आधार बना कर सबसे पहले भारतीय समाज का बटवारा किया धर्म के नाम पर और फिर उनमें बटवारा विवाद के रूप में कर दिया जिसके परिणाम कि देन अच्छे परिवार संस्कार के सर्वानंद गिरी जी काला हांडी के वनप्रदेश में वनवासी समाज के सानिध्य स्नेह सम्मान में सैकड़ो वर्ष पुराने शिवालय में रह रहे थे जहां उन्हें वनवासी समाज के निश्छल निर्विकार और निष्कपट संस्कृति सांस्कार ने जीवन के भयंकर भय से भयाक्रांत कर आहत कर देने वाली पीड़ा बचपन जिन्हें माँ बाप का स्नेह ही मिलना उनका भाग्य सौभाग्य है!

उसी बचपन ने अपने स्नेह मम्मता के आंचल को गाजर मूली कि तरह कटते हुए देखा जिसकी पीड़ा दंश से वनवासी समाज कि निर्विकार निःस्वार्थ अविरल स्नेह के सानिध्य संस्कार ने मरहम का कार्य किया और सर्वानद जी ने निश्चय ही कर लिया था कि वनवासी समाज ही उनका परिवार है उन्ही के साथ जीवन है और उन्ही के बीच मरना तो क्या निद्रा में शुभा भी उन्ही कि तरह शेरपुर के जाने माने व्यवसायी की धर्मांधता के कहर से बची एकमात्र संतान है फिर सर्वानद को लगता कि ऐसा कैसे हो सकता है दंगे में सबसे पहले दंगाईयों ने सबसे पहले यशोवर्धन परिवार को ही अपना लक्ष्य बनाया था!!

 बेचारे चीखते चिल्लाते रहे कि मुझसे क्या आप लोंगो की दुश्मनी है मैंने तो शहर एव आस पास के गांव के लोंगो की सुख सुविधा के लिए जो भी सम्भव हुआ किया सुख दुख का ध्यान दिया फिर भी आप लोग इतने उग्र क्यो हो गए है कि आप हमारे ही अंत के लिए एकत्र हो गए है मैंने तो जीवन भर कभी नही पूछा कि हिन्दू कौन है मुसलमान कौन है मैंने तो जिसको भी जब आवश्यकता पड़ी आगे बढ़ कर मदद किया उग्र भीड़ से कोई बोलता यह मुल्क अब हम मुसलमानों का है यहाँ काफ़िर कैसे रह सकता है खुदा का फरमान है काफ़िर का कत्ल करो जन्नत मिलेगा कोई कहता जा कर गांधी जी से पूछो मुल्क को जिन्ना की जिद पर दो भागों में तकसीम क्यो मंजूर किया अब यह हम मुसलमानों के हिस्सा है!

तुम अपने मुल्क लेकिन कैसे जाओगे हम तुम्हे जहन्नुम देने ही आये है यशोवर्धन ने बहुत समझाने कि कोशिश किया उग्र भीड़ को लेकिन उग्रता तो कुछ भी समझने को तैयार कभी नही होता है एका एक गिड़गिड़ाते यशोवर्धन और सुलोचना को ऐसे काट डाला जैसे कोई कस्साई किसी निरीह जानवर को बच्चे भय से घर मे ही छिपे भय से कांप रहे थे उग्र भीड़ ने घर का कोना कोना छान मारा जब यशोवर्धन के बच्चे नही मिले तब शहर कि सड़कों पर नगा नाच करते हुए खून खराबा करते आगे बढ़ गए धीरे धीरे शाम हो गयी रात शहर का आलम यह था कि लाशों से पट गया चुका था लेकिन मौत का नंगा नाच बन्द बढ़ता ही जा रहा था अपने पुरुखों कि विरासत वरासत सब छोड़कर भाग रहे लोंगो को रास्ते मे घेर कर रेलवे स्टेशन पर जो जहाँ जैसे मिलता वैसे उग्र भीड़ काटती सनातन चीख रहा था अपनी आस्था कि आत्माओं कि वेदना से उनके मृत शरीर को नोच नोच कर खाते लावारिस कुत्तों कौवों गिद्धों के उत्सव तांडव से जो कुत्ते मृतकों के रोटियों पर पलते उनके ही कटे शव नोच नोच कर उत्सव मना रहे थे!

यह अतिश्योक्ति विल्कुल नही था कि उस दौर में सबसे बड़ा जघन्य धार्मिक उन्मादी दंगा जिसमे जाने कितने लाख लोग धार्मिक कट्टरता उन्माद कि भेंट चढ़ गए इतने लोग मारे गए शायद अब तक वैश्विक स्तर पर जितने भी युद्ध लड़े गए है प्रथम एव द्वितीय युद्ध एव भारत का चीन से युद्ध औऱ पाकिस्तान से तीन युद्ध कुल मिलाकर उतने सैनिक नही शहीद हुए होंगे जितने लोंगो को भारत की आजादी के समय भारत पाकिस्तान बटवारे के समय यह काल धार्मिक उन्माद की बीजारोपण का चरण था जिसके सूत्र थे जिन्ना और प्रेरक थे!

 अंग्रेज और सारथी थे महात्मा गांधी जी जिन्होंनो सत्य अहिंसा के नाम पर हिन्दू समाज के साथ जिसने उन्हें सर्व स्वीकार्यता दी जिसने उन्हें राष्ट्र पिता स्वीकार किया बापू का प्यार दिया जिसने महात्मा कि आत्मा को अंगीकार किया महात्मा की विवशता का इतिहासकार और शोध कर्ताओं के पास आज भी ठोस सबूत नही है परिवार समाज समुलता से समाप्त हो गए शुभा उसी सच्चाई कि जीवंत ऐसी विवश बेवश नारी थी जो आशाओं की किरण खोजती भटक रही थी।


जारी है


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2 Comments

kashish

09-Sep-2023 08:12 AM

V nice

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Abhilasha Deshpande

13-Aug-2023 09:35 AM

Fantastic part

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